कॉलेज में पढ़ने वाले बेटे ने अपने बीमार पिता को जीवन‑दान देने के लिए अपना आधा लिवर दान किया
पटना।
फ़ादर्स डे के अवसर पर पिता‑पुत्र के अटूट प्रेम की मिसाल पेश करते हुए एक कॉलेज में पढ़ने वाले बेटे ने अपने बीमार पिता को जीवन‑दान देने के लिए अपना आधा लिवर दान किया। यह लिवर प्रत्यारोपण मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फ़रीदाबाद में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, जो उन्नत लिवर केयर और ट्रांसप्लांट सर्जरी के क्षेत्र में उत्कृष्टता का केंद्र है। 51 वर्षीय हरियाणा निवासी श्री जोगिंदर चावला पिछले दो वर्षों से पुरानी लिवर बीमारी से जूझ रहे थे। लगातार पीलिया, पेट में पानी भरना और आंतों से रक्तस्राव जैसी गंभीर समस्याएँ उनकी हालत को दिन‑प्रतिदिन बिगाड़ रही थीं। तमाम इलाज के बाद भी जब लिवर पूरी तरह विफल होने लगा, तो प्रत्यारोपण ही आख़िरी विकल्प बचा।
उपयुक्त डोनर की तलाश के दौरान, श्री चावला के कॉलेज‑पढ़ने वाले बेटे का रक्त‑समूह मेल खा गया और उसने आगे बढ़कर अपने जिगर का एक हिस्सा दान करने का निश्चय किया। भावुक परिवार के लिए यह फैसला आसान नहीं था—एक ओर बेटे के स्वास्थ्य की चिंता, दूसरी ओर पिता को बचाने की तात्कालिक आवश्यकता। परंतु बेटे के अडिग संकल्प ने सबको हौसला दिया। उसने शांत स्वर में कहा, “पापा हमेशा मेरे साथ खड़े रहे हैं, अब मेरी बारी थी।
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फ़रीदाबाद के डॉ. पुनीत सिंगला, प्रोग्राम क्लिनिकल डायरेक्टर, इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर ट्रांसप्लांट व एचपीबी सर्जरी, के नेतृत्व में बहु‑विषयक टीम ने इस जटिल शल्य‑क्रिया को अत्याधुनिक तकनीकों के साथ अंजाम दिया, जिससे रक्तस्राव न्यूनतम रहा और दोनों मरीजों की रिकवरी तेज़ हुई।
डॉ. सिंगला ने कहा, “इस प्रत्यारोपण की सफलता केवल शल्य‑कौशल पर नहीं, बल्कि इस परिवार की मानसिक‑भावनात्मक दृढ़ता पर भी निर्भर रही। लिविंग‑डोनर लिवर ट्रांसप्लांट तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण होते हैं, पर आधुनिक प्रगति और अनुभवी टीम के साथ परिणाम बेहद सुरक्षित और प्रभावी हैं। यह पिता‑पुत्र की कहानी चिकित्सा विज्ञान की क्षमताओं और पारिवारिक रिश्तों की ताक़त को एक साथ रेखांकित करती है—कभी‑कभी सबसे अनमोल उपहार खरीदा नहीं जाता, बल्कि अपने भीतर से दिया जाता है।”
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